Wednesday 19 March 2014

नारी सशक्तीकरण : लाचार कानून

आज तक महिलाओ की भलाई / सुरक्षा के लिये जितने भी कानून बने है, वो महिलाओ पर हो रहे अत्याचारो और शोषण को समाप्त करने मे असफल रहे है| दिल्ली के गॅंग रेप घटना के बाद सरकार कुछ नये कानून बनाने और पुराने कानूनो पर संसोधन करने पर विचार कर रही है| प्रश्न यह है क्या सिर्फ कानून बनाने से समस्याए खत्म हो जायेगी?? आइये नजर डाले आज तक महिलाओ के लिये बनाये गये कुछ चुनिदा लेजिस्लेशन पर और सोचे कितना कारगर साबित हुए और कितने प्रभावशाली तरीके से इन्हे लागू किया गया है|

1.दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961
दहेज प्रथा रोकने मे यह कानून असफल रहा है, यह हम सब जानते है| आये दिन दहेज की प्रताडना की शिकार महिलाये जो आत्मघात करती है या मार दी जाती है उनके बारे मे खबरे अखबारो पर आती रहती है| यह प्रथा एक अभिशाप बन गयी है| कितनी ही मासूम नव वधू / दुल्हने पिछले 30-40 सालो मे हमारे देश मे मारी जा चुकी है, यह आकडे दिल दहलाने वाले है| और लड़के वालो की भूख शांत नही होती दिखती है| आज भी दहेज लिया और दिया जा रहा है| ऐसा लगता है जल्दी धनवान बनने का इससे आसान तरीका और कोई नही रहा है| मुफ्त का टीवी / फ्रिड्ज/ कार/ फ्लॅट पाने के लिये लडको की बोली लगाई जा रही है| एक ऐसी पीढी तैयार कर दी है हमने जिनकी रीढ़ की हड्डी नही है और याचक बनकर भी अकड दिखा कर खड़े है| मॉडर्न "कूल" जेनरेशन भी जब दहेज की बात आती है, तो मां के पल्लू मे छुप  जाते है, और जो घर के बड़े फैसला / मोल भाव करते है वो चुपचाप स्वीकार करते है|

2.महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 
महिलाओ को गलत वा अश्‍लील और कामुक तरीके से प्रदशित करना, आज आम बात है| महिलाये "आइटम" हो चुकी है और बाजार तैयार है, चाहे गाडिया - बाइक बेचनी हो या मोबाइल हर जगह युवा लड़कियॉ का अश्लील प्रदर्शन हो रहा है| प्रिंट मीडिया हो या ई-मीडिया, नारी का शोषण हो रहा है| जो विरोध कर रहा है वो दकियानूसी है| दुख है कि नारी भी इसमे सहभागी है, और अपने आप को उपभोग का वस्तु बनाने मे सहयोग दे रही है| आज "प्लेबाय" के मुख्य पेज मे नग्न फोटो आने पर एक अभिनेत्री भारत के लिये यह गौरव की बात है ऐसा बता रही है| किंगफिशर के सालाना कॅलंडर मे अर्धनग्न मॉडेलो मे शामिल होना गर्व का विषय बन गया है युवा लड़कियॉ के लिये|

3.अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956

सब जानते है की मानव ट्रॅफिकिंग एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है| मानव ट्रॅफिकिंग जिसमे महिलाओ और छोटे बच्चो की तस्करी होती है, इनमे मामलो ज्यादा तर  लड़कियॉ को वेश्यावृति मे लगाया जाता है|  और जिसका अंत होता दिख नही रहा है| एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे ना सिर्फ गरीब क्षेत्रो से, कस्बो से, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश, म्यामार से लड़किया अवेध रूप मे लाई जा रही है, जिन्हे या तो भारत के बड़े शहरो मे बेचा जाता है, या गल्फ / युरोप मे सप्लाइ किया जाता है| अधिकतर मामलो मे इन लड़कियॉ का सेक्स के लिये उपभोग होता है| एक रेड लाइट एरिया की महिला के अनुसार जब से पॉर्न मोबाइल और इंटरनेट मे उपलब्ध हो गया है, "कस्टमर" की मांगे बढ गयी है| अब चाइल्ड पॉर्न के आने से छोटी लड़कियॉ की मांग बढ गयी है| और यह वो मासूम जिंदगीया समाज के उस तबकेका प्रतिनिधितव कर रहे है जिनके लिये कोई कॅंडल लाइट मोरचे नही निकालता| ऐसे मासूमो का भविष्य दाव इसलिये लगाया जा रहा है ताकि समाज के कुछ लोगो की खास 'भूख' मिटाई जा सके,  जो पूरा नही हो पाये तो समाज मे अराजकता फैल जायेगी| सब चुप है, क्योकि  उन गरीब लड़किया का भविष्य ऐसे भी कुछ खास नही था|  कुछ सालो के बाद इन लड़कियॉ की किस्मत मे बिमारियो और लाचारियो के अलावा कुछ नही बचता|

4.घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005


महिलाओ के साथ घरेलू हिंसा की खबरे विश्व के हर कोने से आती है| एक अनुमान के अनुसार 70% महिलाये भारत के घरो मे घरेलू हिंसा का शिकार होती है| घरेलू हिंसा मे ना सिर्फ शारारिक प्रहार शामिल है, ब्लकि मानसिक यंत्रणा भी आती है| हर 9 मिनिट मे एक महिला को उसके पति या घरवालो द्वारा प्रताडना दी जाती है| और इन घरेलू  हिंसा की शिकार महिलाओ मे सुशिक्षित व कामकाजी महिलाये भी शामिल है| माता पिता द्वारा ऑनर किल्लिंग या ससुराल मे मिलते ताने, थप्पड़,  जितना अपमान  महिलाओ का घरो की चार दीवारो के अंदर होता है उतना शायद ही और कही होता होगा| और कितनी महिलाये इस कानून का सहारा ले पाती  है? सब यही राय देते है कि चुप रहो और अपना घर बचाओ|

यह तो सिर्फ कुछ कानून है, चाहे बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 या, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 हम असफल रहे है| यही बात  बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, सं 1986 या सती (निवारण) अधिनियम, 1987 के कमीशन, जैसे और भी कानूनो पर लागू होती है| भारतीय दंड संहिता [आइ पी सी] मे महिलाओ की सुरक्षा के लिये जो प्रावधान हो या इंडियन एविडेन्स आक्ट के नियम, वास्तविकता मे महिलाओ को सशक्त नही बना सकते|


हमे जानना चाहिये कि कानून की भी अपनी सीमाए है| एक स्वंतत्र और शिक्षित लोगो के लिये उपयोगी है, पर जो अपने अधिकारो के प्रति सचेत नही है, उनके लिये कुछ नही किया जा सकता| महिलाओ का उदधार सिर्फ महिलाओ द्वारा ही हो सकता है|

अगले 20 सालो मे आने वाली नयी पीढी की महिलाये अगर चाहे तो 2000 सालो से ज्यादा चला आ रहा अन्याय समाप्त हो सकता है| पर शर्त यही है की अपने सिध्दातो के लिये लड़ना सीखना पड़ेगा आप लोगो को| यह लड़ाई हर घर से लड़नी होगी आपको| हर कदम मे कठोर निर्णय लेने होंगे| चाहे कोई भी धर्म हो, या समाज, नारी का अपमान सबने किया है| अब आप लोगो को अपना मुकाम स्वय तय करना पड़ेगा| बिना आर्थिक आजादी के आप मानसिक आजादी पा नही पाओगे| आप माँ के रूप मे अपने बेटो को महिलाओ को सन्मान देना सिखाये, और बेटियो को आत्मनिर्भर बनाना सिखाये| सास के रूप मे बहू के नारी अधिकारो के प्रति सचेत रहे और अगर आपका बेटा बहू के अधिकारो का हनन करता है, या अपमान करता है तो बहू का साथ दे| अगर एक स्त्री ही स्त्री का साथ नही देगी तो यह अन्याय समाप्त नही हो पायेगा| न्याय की कसौटी मे परखोगी तो कौन सही है कौन गलत यह निर्णय लेना आसान हो जायेगा|

जिस तरह गलत कदम उठने पर पति कभी पत्नी को क्षमा नही करता, उसी तरह कुमार्ग पर जाने वाले पति को क्षमा नही करना चाहिये| क्या जरूरत है रिश्तो की लाश ढोने की| जिस रिश्ते मे स्नेह नही, सन्मान नही, प्रेम नही, उसे बनाये रखने का का क्या मतलब है??  अगर कोई पति दूसरी स्त्री से अनेतिक सम्बंध रखता है, तो उसे अपमान का घुट पी कर क्यो बर्दाश करने का? कुछ रास्तो से वापसी नही होनी चाहिये| अगर आप सही हो तो ईश्वर कभी भी आपके साथ गलत नही होने देगा| पर लड़ना सीखो| भगवान गीता मे कहते है, अच्छे लोगो का कभी भी बुरा अंत नही होता| अच्छाई और सत्य के मार्ग पर चलने वाला कभी बुराई से पराजित नही होता| और जीवन के अंत मे आप अपने आप को सन्मान  की नजरो से देख पायेगी, की आपने सिर् उठा कर जिया|
गर्भपात नही कराना है, दहेज देना है या नही, यह सारी बाते विवाह से पहले ही साफ कर देनी चाहिये| पहले की क्लियर कर दो की भ्रूण परीक्षण नही कराएगी, और जो उपहार प्रकृति से  मिलेगा, वो स्वीकार करेंगे|
अपने आप को उपभोग की वस्तु बना कर फिल्मो और अखबारो मे आने नही दो|

माता पिता को शादियो मे बेशुमार खर्चे करने की जरूरत ही नही है| सादगी और प्रेम से कम लोगो को बुलाकर शादी कराये| और बचत किये हुए पैसे बैंक मे बेटी  के नाम पर जमा कर दे| अगर शादी 8-9 साल तक चलती है, तो बेटी-दामाद को दे वर्ना बेटी के तो काम आ ही जायेगा| बेटियो के लिये सबसे बड़ी सम्पती उनको दी हुई शिक्षा है| उनकी शिक्षा पर खूब खर्चे करे| वो अपने आप को इतना बहुमूल्य बना दे, कि इस संसार का सारा दहेज उसके सामने फीका पड जाये|

लडको को भी घर का काम सिखाये| पत्निया कोई अनपेड नौकरानिया नही है, जो जिंदगी भर आपकी दासता करती रहेगी| अक्सर मा-पिता का यही नजरिया होता है, बेटो को सिर् चढ़ा दिया जाता है| कुंवारे आदमी को भी यही राय मिलती है की शादी कर लो वर्ना कपड़े कौन धोयेगा, खाना कौन बनायेगा| जैसे पत्नियो का काम सिर्फ यही है| कोई यह नही कहता की आगे जाकर जीवन साथी की जरूरत पड़ेगी| लोगो की मानसिकता 21 वी सदी मे भी वही दकियानूसी है|

भारत तो आज़ाद हो गया पर हमारी महिलाये आज भी दासता का जीवन जी रही है| तोड दो,  उन बंधनो को जो तुम्हे दास बना रहे है,  जो तुम्हारा गला घोट रहे है| वो विचारधारा जो  तुम्हारा शोषण कर रही है, उन्हे त्यागना जरूरी है|
अपनी शक्तियो को पहचानना सीखो| तुम प्रकृति रूपा हो, शक्तिशालिनी हो, दुर्गा हो, लक्ष्मी हो, विद्या हो, तुम इस जगत की आधार हो| तुम्हारे बिना सृष्टि की संभावना ही नही| तुम्हे अपना उद्धार करने के लिये किसी के सहारे की जरूरत नही है| तुम स्वय अपना सर्वोच्च स्थान पाने मे समर्थ हो| तुम्हारा कल्याण हो| तुम दोषरहित हो, निर्मला हो, ऋग्वेद, यजुर वेद का आधार हो| तुम मोक्ष प्राप्ति का साधन हो| तुम अलोकिक तो, अतुल्य हो, अप्रमेय हो, अदभुत हो, अमूल्य हो, तुम जैसी रचना प्रकृति मे और कोई नही| तुम्हे नमस्कार है!

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेणा संस्थिता 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

जो देवी सभी मे शक्ति रूप मे विराजमान है उन्हे नमस्कार है, नमस्कार है, बांर बार नमस्कार है!
 स्त्रोत: राजेश्वर, नवभारत टाइम्स

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