महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा त्रासदी से कम नहीं तो क्या ?
सुरक्षा किसकी हो रही है? सवाल किसपे उठ रहा है ? महिलाओं के प्रति हो रहा शोषण, दुराचार उफान पर है और जवाब किसको खोज रहा है ? वक्त तो करवट लेकर ज़माने की चौखट का चबूतरा बदल दिया है। लेकिन महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा स्त्रियों के हौसले को कम करता जा रहा है। इतनी दयनीय स्तिथि हो गयी है की अब सवाल नारी के वजूद का नहीं पुरुष के पुरुषार्थ पे है। जिस तरह से ऐसे हिंसा को अंजाम देते जा रहे है जिससे अब समाज में आदमी भी रहता है क्या? जैसे सवाल मन से स्वतः उठने लगे हैं। महिलाओं के साथ हिंसा आज से नहीं बहुत पहले से होती आ रही है। उनको निचा दिखाना, उनको प्रताड़ित करना ये सब नए किस्से नहीं है साहित्य भी इस बात का गवाह है। लेकिन जैसे जैसे भारत की साक्षरता दर बढ़ रही है वैसे-वैसे अपराध का स्तर आसमान छूता जा रहा है। साक्षरता दर बढ़ी है तो परिणाम ये हुआ है की मानसिकता अँधा-धुंध आँख मिचोली खेल रही है गरीबों का माई-बाप अँधा कानून बना बैठा है जुर्म अपनी सीमा और हदे पार कर दी है। लेकिन न्याय की तरक्की अपनी सीमा तक नहीं पहुंचा है जिसकी वजह से हजारों लाखों सीमायें अन्याय जुर्म के निचे दबी पड़ी है और महिलाओं के लिए बनाये गए कानून खुद एक दुसरे को नहीं जानते की उनका जन्म क्यूँ हुआ है। प्रकृति ने भी कहाँ है हम संतुलन के दूत है शायद मनुष्य इसलिए जानवर से अलग है क्यूंकि संतुलन करने की वृहद् क्षमता उसे असीम ईश्वर ने प्रदान की है लेकिन समाज में क्या हो रहा है इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न में रह जा रहा है और अन्याय न्याय को घुटने के बल बिठा दिया है। अब जुर्म उम्र नहीं देखता है, समय नहीं देखता, इंसान नही देखता, पर न्याय क्यूँ नतीजा देने के लिए उम्र का इंतज़ार करता है? क्या समाज केवल एक वर्ग के बल पर जीवंत होगा? क्या महिलाओं के प्रति हिंसा और पुरुषों अन्दर भरे घिनौने विचारों से हम सुन्दर समाज की कल्पना कर सकते है ? बहुत ही शर्मनाक स्तिथि है। हम भारत को भारत माता कह कर पुकारते है, जिस देश को देवी के रूप में देखते है माँ कहते है, वही महिलाओं के साथ ऐसे घटनाएं क्या देश को विकास की और ले जा सकती है ? कदापि नहीं आज भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। उसका कारण मैं तर्क के आधार पे तो नहीं अपने मन में पनपते विचारों के द्वारा यही कह सकती हूँ अगर माँ को सतायेंगे, माँ को गाली देंगे, माँ की इज्ज़त नही करंगे तो आप भी उसी माँ की संतान है आखिर आप माँ को प्रतारित करके कैसे तरक्की करेंगे ?जब माँ का आशीर्वाद ही नहीं मिलेगा तो सफलता और विकास की सवाल नही बनता इसलिए सबसे पहले महिलाओं पे हो रहा हिंसा को रोक जाए और जितना भी जल्दी हो सके अपराधियों, दुराचारियों को सजा दी जाए जिससे अन्य घिनौनें अपराधियों के अन्दर डर नाम की चीज़ उत्पन्न हो. जिस तरह से दुराचार, छेड़छाड़, अश्लीलता जैसे बुरे कार्य दिनों-दिन हो रहे है। इससे भारत माँ का शीश शर्म से झुका है हमारा देश मर्यादा, संस्कार, सभ्यताओं के लिए जाना जाता है लेकिन पता नहीं जमाना किस आंधी में अपने आँखों में धुल झोक जा रहा है और अपने संस्कार को चित से चिरता जा रहा है। अभी भी देर नहीं हुई है किसी के बेटी , बहन, बहु के साथ अगर हिंसा हो रही है तो आवाज उठायें चुप न बैठ क्यूंकि घर किसी और का जलेगा तो चिंगारी आप तक जरुर पहुचेंगी। हम बहुत भाग्यशाली है की भारत की भूमि में हम सब का जन्म हुआ है अनेकों सभ्यताओं संस्कृतियों से परिपूर्ण ऐसा कोई देश न होगा जैसे भारतवर्ष है। अपने मन को पवित्र रखे और देखे दुनिया कितनी खुबसूरत है। सभी ईश्वर अल्लाह के बच्चे है इसलिए किसी को नुकसान पहुचना परम-पिता को चोटिल करने के सामान है। अपने घर से लेकर सड़क तक जहाँ भी महिलाएं, बालिकाएं, बच्चियां के प्रति आदर रखे क्यूंकि बढती हिंसा से महिलाओं के मन में विश्वास जैसे चीज़ ख़त्म होती जा रही है। भारतीय होने के नातें अपने अस्तित्व को समझे और महिलाओं के प्रति हो रहे हिंसा को जड़ से ख़त्म करने का संकल्प ले।
ऋतु राय